आरा अति प्राचीन शहर है जोकि एक सुखी व् समृद्ध शहर था। आरा का अपना एक गौरवशाली इतिहास है। ऐसा कहा जाता है कि आरा का नाम संस्कृत के शब्द 'अरण्य' से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है वन। अर्थात आधुनिक आरा के आसपास का पूरा क्षेत्र सघन वन से पटा पडा था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऋषि विश्वामित्र, प्रभु राम के गुरु, का आश्रम इसी क्षेत्र में कहीं स्थित था। महाभारत कालीन अवशेष भी यहां बिखरे पड़े हैं। 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रतायुद्ध के प्रमुख सेनानी बाबू कुंवर सिंह की कार्यस्थली होने का गौरव भी इस नगर को प्राप्त है।
लेकिन आज आरा का गौरवशाली इतिहास कही खो गया है आज आरा में गरीबी, अशिक्षा और अपराध चरम पर है हर ओर एक भय की स्थिति व्याप्त है। पूरे आरा शहर की जनता आज जमीन जिहाद से परेशान है, हर किसी के दिलों में यह डर बना हुआ है कि कब उनकी ज़मीन ना जेहाद हो जाये। शहर के खूंखार अपराधियों ने अब जमीन जेहाद का काम शुरू कर दिया है, ये जिहादी फर्जी कागजातों के आधार पर किसी की भी ज़मीन पर धावा बोल देते हैं और ज़ोर जबरदस्ती व् गुंडागर्दी से उस जमीन को कब्ज़ा कर लेते हैं। इस जमीन जेहाद का शिकार मैं और मेरा परिवार भी है, वर्ष 2017 में इन जेहादियों ने हमारी पुश्तैनी संपत्ति को ज़ोर जबरदस्ती व् गुंडागर्दी के बल पर कब्ज़ा करने का अथक प्रयास किया लेकिन मैंने और मेरे चाचा ने इनके प्रयास को विफल कर दिया, जिसके बाद ये जेहादी बौखला गये और दिन दहाड़े , खुलेआम 23 गोली मारकर मेरे चाचा और मेरे परिवार के मुखिया की हत्या कर दी।
मेरे दादाजी बाबु राम खेलावन सिंह ने वर्ष 1961 में श्री आरा गौशाला को 3.25 एकड़ जमीन दान में दी थी ताकि हमारी गौमाताओं के चारे का इंतज़ाम हो सके लेकिन इन जेहादियों ने श्री आरा गौशाला की इस ज़मीन को भी जेहाद कर दिया जिसे मैंने ज़ोर-शोर से उठाया था लेकिन प्रसाशन कि लचर रवैये के कारण इस पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुयी है । आज भी आरा में जंगलराज क़ायम है और इसका श्रेय जाता है स्थानीय विधायक को।
मेरी कामना है कि मैं आरा के गौरवशाली इतिहास को वापस लाऊँ, इसकी खोई हुई गरिमा को फिर से स्थापित कर दूँ। आरा में स्थापित जमीन जेहाद और जंगल राज को उखाड़ फेंकते हुये एक सौहार्द का वातावरण क़ायम कर सकूँ। मेरी यह कोशिश होगी कि आरा में शिक्षा व् स्वस्थ्य की अच्छी व्यवस्था क़ायम हो ताकि यहाँ के बच्चों और मरीजों को शिक्षा और इलाज के लिये कहीं और ना जाना पड़े, साथ ही मेरी यह भी कोशिश होगी की इस क्षेत्र में स्वरोज़गार के नये अवसरों को तलाश कर यहाँ रोज़गार का सृजन कर यहाँ के लोगों को आत्मा निर्भर बनाऊं। इस मिटटी का बेटा होने के नाते मैं अपना यह फ़र्ज़ मानता हूँ कि इस मिटटी की महक को एक बार फिर चारों ओर फैलाऊं।